यथार्थ
Friday, November 3, 2017
घुटन में भी एक चेतना है
जो बंद कमरों में अहर्निश जलती है
जब धुआं गहराता जाए तो चीखना जरूरी है
खोए हुए अस्तित्व का एहसास जरूरी है
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